इसलिए मनाया जाता है ईद-उल-जुहा…


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ईद-इल-फित्र के दो तीन महीने बाद ईद-उल-जुहा का त्योहार मनाया जाता है. इस्लाम धर्म का यह दूसरा प्रमुख त्योहार है. इसे बकरीद के नाम से भी जाना जाता है.

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ईद-उल-जुहा हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुक्म पर अल्लाह के प्रति अपनी वफादारी दिखाने के लिए अपने बेटे हजरत इस्माइल को कुर्बान करने पर राजी हुए थे. इस पर्व का मुख्य लक्ष्य लोगों में जनसेवा और अल्लाह की सेवा के भाव को जगाना है. ईद-उल-ज़ुहा का यह पर्व इस्लाम के पांचवें सिद्धान्त हज की भी पूर्ति करता है.

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ईद-उल-जुहा को कैसे मनाया जाता है?
– ईद-उल-जुहा के दिन मुसलमान किसी जानवर जैसे बकरा, भेड़, ऊंट आदि की कुर्बानी देते हैं. इस कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है: एक खुद के लिए, एक सगे-संबंधियों के लिए और एक गरीबों के लिए.
– इस दिन सभी लोग साफ-पाक होकर नए कपड़े पहनकर नमाज पढ़ते हैं. मर्दों को मस्जिद व ईदगाह और औरतों को घरों में ही पढ़ने का हुक्म है. नमाज पढ़कर आने के बाद ही कुर्बानी की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है.
– ईद उल फित्र की तरह ईद उल जुहा में भी जकात देना अनिवार्य होता है ताकि खुशी के इस मौके पर कोई गरीब महरूम ना रह जाए.

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ईद-उल-जुहा की कहानी
कुरआन में बताया गया है कि एक दिन अल्लाह ने हजरत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी. हजरत इब्राहिम को सबसे प्रिय अपना बेटा लगता था. उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का निर्णय किया. लेकिन जैसे ही हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे की बलि लेने के लिए उसकी गर्दन पर वार किया, अल्लाह चाकू की धार से हजरत इब्राहिम के पुत्र को बचाकर एक भेड़ की कुर्बानी दिलवा दी. इसी कारण इस पर्व को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है.

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