‘ड्रैकुला’ की तरह इंसानी खून पीते हैं ये लोग, कौन हैं ये?

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आपको यकीन भले न हो, लेकिन कई नर्सें, बार स्टॉफ, सेक्रेटरी और दूसरे लोग नियमित तौर पर इंसान का खून पीते हैं. सवाल ये है कि लोग आखिर खून क्यों पीते हैं? एक दिन अमरीका के न्यू ऑरलींस के फ्रेंच क्वार्टर इलाके में मैंने पाया कि जॉन एडगर ब्राउनिंग के ‘रक्तदान’ का एक खास सत्र शुरू होने वाला था. इसे चिकित्सीय अंदाज में शुरू किया गया. उनके जानकार ने एल्कोहल से उनकी पीठ का एक हिस्सा साफ किया. फिर उनकी पीठ पर डिस्पोजबल छुरी से एक कट लगाया जिससे शरीर से खून निकलने लगा. फिर उसने खून पीना शुरू कर दिया.

उस घटना को याद करते हुए ब्राउनिंग बताते हैं, “उसने मेरा थोड़ा सा खून पीने के बाद मेरे शरीर को साफ किया और कटी हुई जगह पर पट्टी लगा दी.” ब्राउनिंग को हैरानी हुई जब खून पीने वाले ने उनसे कहा कि उनके खून में मैटेलिक तत्वों की मात्रा कम है और ये उसके टेस्ट के मुताबिक नहीं है. खून का स्वाद आपके खान-पान, शरीर में पानी की मात्रा और ब्लड ग्रुप से तय होता है.

दरअसल ब्राउनिंग, लुइजियाना स्टेट यूनिवर्सिटी के रिसर्चर हैं. वे न्यूऑरलींस रियल वैम्पायर समुदाय पर हो रहे शोध से जुड़े हैं. अमरीका में ही हजारों लोग हैं जिन्हें खून पीने की लत है. पहले ब्राउनिंग मानते थे कि ब्लड फीडिंग बस एक तरह की तांत्रिक गतिविधि या कोई धार्मिक कांड है. लेकिन तब तक वो उन लोगों से नहीं मिले थे जो इंसान का खून पीते हैं.

ऐसे में जब उन्होंने ब्लड फीडिंग के लिए खुद को डोनर के तौर पर पेश किया तो उनका नजरिया ही बदल गया. खून पीने वाले लोगों में ज्यादातर लोगों का अलौकिक शक्तियों पर कोई भरोसा नहीं था. हालांकि ऐसे लोगों की हालत विचित्र ही दिखी मसलन- थकान, सिर दर्द और असहनीय पेट दर्द. इन सभी लोगों को ये भी लगता है कि इन्हें आराम केवल इंसानों का खून पीने से ही मिल सकता है.

ब्राउनिंग कहते हैं, “अमरीका में हजारों लोग ऐसा करते हैं और यह केवल संयोग भर नहीं है और न ही यह सनक है.” इन लोगों के लक्षण और व्यवहार वाकई में रहस्य से कम नहीं होते. जिन इंसानी खून पीने वालों से मेरा संपर्क हुआ, उनके नाम बदल कर इस्तेमाल किए गए हैं.

इतिहास में ऐसी कई मिसाल मिलती है जब इंसानी खून को अचूक इलाज माना जाता रहा है. उदाहरण के लिए 15वीं शताब्दी के अंत में, पोप इनोसेंट अष्ठम को युवाओं का खून पिलाकर दोबारा युवावस्था में लाने का प्रयास किया गया.

इस दौरान उनके चिकित्सक ने तीन युवाओं का खून बहाना शुरू किया ताकि गर्म खून को मरणासन्न पोप को पिलाया जाए और उनमें युवाओं जैसी ताकत आ सके. बाद में इंसानी खून का इस्तेमाल मिरगी के इलाज में भी किया जाने लगा.

 

इसके लिए मिरगी पीड़ित लोग उन जगहों पर जमा होते थे जहां लोगों को फांसी दी जाती थी ताकि उन्हें तुरंत खून मिल सके. इडाहो स्टेट यूनिवर्सिटी के समाज वैज्ञानिक डीजे विलियम्स के मुताबिक दुनिया भर के कई प्रमुख शहरों में खून पीने वाले लोगों का कोई न कोई समूह है.

डरहम यूनिवर्सिटी के रिचर्ड सुग ने हाल में ‘कॉर्प्स मेडिसिन’ (लाशों से दवा) नाम की किताब लिखी है. वो मानव रक्त पीने वालो पर किताब लिख रहे हैं. 18वीं और 19वीं शताब्दी में ये धारणा काफी प्रचलित थी कि स्वस्थ युवाओं का खून पीने से युवाओं जैसा भाव आता है. लेकिन बाद में ऐसे इलाज बंद कर दिए गए.

इंटरनेट से पहले के जमाने में ये लोग अलग-थलग पड़े हुए थे लेकिन अब इन समूहों की वेबसाइट और वेब पन्नों के चलते इन लोगों का नेटवर्क भी खासा विकसित हो गया है. इंसानी खून पीने की आदत वाले लोगों के कई रूप हैं मसलन खून पीने वाली नर्सें, बार स्टॉफ, सेक्रेटरी या फिर ऐसे ही कई अन्य पेशेवर लोग जो सामान्य नौकरियां करते हैं.

इनमें कई चर्च जाने वाले क्रिश्चियन हैं तो दूसरे धर्मों को मानने वाले लोग भी हैं. कई बार ये भी देखा गया कि ये लोग खूब परोपकारी भी होते हैं. ऐसे ही इंसानी खून पीने वाले मार्टिकस ने बताया, “हम लोग केवल कब्रिस्तानों में नहीं जाते, हम नाइट क्लब जाते हैं.”

ऐसे कई ‘वैम्पायर’ होते हैं जिनके लिए खून पीना एक मनोवैज्ञानिक जरूरत बन जाता है और वे ऐसा समझने लगते हैं. ब्राउनिंग ने इंसानी खून पीने वाले कई लोगों से बात की.

इनमें एक 13-14 साल का लड़का भी था. उसने ब्राउनिंग को बताया कि वह हमेशा कमजोर महसूस करता था, दोस्तों के साथ खेलते हुए थक जाता था. एक दिन उसके अपने किसी दोस्त से झगड़ा हो गया.

इस झगड़े में उसके दोस्त को चोट लग गई, ख़ून बहने लगा और उसी दौरान वो खून उसके मुँह, दांतों में लग गया जिससे उसे अचानक ही काफी ताकत महसूस हुई. खून के स्वाद ने खून की भूख भी बढ़ा दी. इंसानी खून पीने वाले एक ‘वैम्पायर’ सीजे का दावा है कि सात ग्लास खून पीने के बाद हमारा पाचन तंत्र बहुत अच्छे तरीके से काम करना शुरू कर देता है.

सीजे की दोस्त किनिसिया कहती हैं, “एक सप्ताह तक बिना खून पिए नहीं रह सकती. मुझे इसकी तलब होने लगती है.” खून पीते ही किनिसिया सामान्य महसूस करने लगती हैं. वे कहती हैं, “मैं सौ फीसदी बेहतर महसूस करने लगती हूं. शरीर में कहीं कोई दर्द भी महसूस नहीं होता है. ऐसा दो सप्ताह तक चलता है.”

ऐसे लोगों के लिए संभावित डोनर तलाशना भी बेहद मुश्किल भरा काम है. किनिसिया तो कुछ सप्ताह बाद अपने पति का ही खून ले लेती है.

ऐसे लोग अपने साथ खास किट भी इस्तेमाल करते हैं. वे त्वचा को साफ रखने के लिए एंटीसेप्टिक का इस्तेमाल करते हैं. हाथ और शरीर के दूसरे हिस्सों पर कस कर बांधने के लिए मजबूत धागा इत्यादि भी रखते हैं. नीडल के अलावा कटोरा भी रखते हैं जिसमें खून जमा किया जा सके. इतना ही नहीं ये लोग चिकित्सीय नजरिये से भी सजग होते हैं. एक-दूसरे में संक्रामक बीमारियां नहीं फैलें इसके लिए ऐसे लोग अपना हेल्थ चेक-अप कराते रहते हैं और डिस्पोज्बल सीरिंज का इस्तेमाल करते हैं.

कई ऐसे भी हैं, जिनके पास अत्याधुनिक चिकित्सीय जानकारी होती है. इंसानी खून पीने वाले कई लोग खून में हर्ब या चाय मिलाकर भी पीते हैं. खास बात ये भी है कि इंसानी खून पीने वालों की सेहत पर इसका कोई खराब असर नहीं देखा गया है हालांकि इसकी ज्यादा मात्रा खतरनाक हो सकती है.

ब्राउनिंग कहते हैं, “मैंने जितने लोगों का साक्षात्कार किया उनमें से किसी को कोई समस्या नहीं हुई थी.” हालांकि यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के टॉमस गैंज के मुताबिक इंसानी खून पीने से संक्रमित बीमारियों की चपेट में आने की संभावना हमेशा बनी रहती है.

गैंज ये भी मानते हैं कि खून पीना काफी हद तक मनोवैज्ञानिक कारणों पर निर्भर करता है. कई लोगों को खून पीना मानसिक तौर पर महंगी वाइन पीने जैसा बोध कराता है. कुछ लोगों के मुताबिक खून पीने की चाहत काफ़ी हद तक मानसिक स्वास्थ्य से भी जुड़ा मसला है. गैंज के मुताबिक कोई भी असामान्य व्यवहार मानसिक बीमारी का संकेत देता है. हालांकि गैंज ये भी मानते हैं कि खून पीने वाले और खून देने वाले को कोई मुश्किल नहीं हो तो स्थिति को गंभीर मानने का कोई आधार भी नहीं है.

गैंज ये भी मानते हैं कि खून पीने वाले लोगों के अनुभव को पूरी तरह समझे बिना खारिज करने से बचना चाहिए. हालाँकि खून पीने वाले कई लोग अपनी इस लत और इन लक्षणों के कारणों का स्पष्टीकरण खोज रहे हैं. कई ऐसे लोग इस कोशिश में जुटे हैं कि उन्हें इससे बचने की कोई संतोषजनक चिकित्सकीय मदद मिल सके.

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