फिल्म समीक्षा : लंदन हैज फॉलेन

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सर्वजीत सिंह चौहान

साल 2013 में रिलीज हुई फिल्म ‘ओलम्पस हैज फॉलेन’ सीरीज की फिल्म है ‘लंदन हैज फॉलेन’. इस बार भी फिल्म अमेरिकन राष्ट्रपति बैंजामिन(Aaron Eckhart), सिक्योरिटी ऑफिसर माइक बैनिंग(Gerard Butler) और वाइस प्रेसीडेंट(Morgan Freeman) के ईर्द गिर्द घूमते हुए आगे बढ़ती है. तीन साल पहले आतंकवादी हमला झेल चुका अमेरिका फिर से उठ खड़ा हुआ है और नई हवा में सांस ले रहा है.

इस बार G-8 देशों की सहमति लेकर अमेरिका द्वारा आर्म्स डीलर और आतंकवादी आमिर बर्कावी पर किया गया ड्रोन हमला उसे भारी पड़ता है. ये अमेरिका का दुर्भाग्य है कि इतने विध्वंसक हमले के बाद भी आमिर और उसका बेटा रहमान बच जाते हैं पर इस हमले में आमिर ने बहुत कुछ गंवा दिया है. गुस्से में पागल होकर आमिर बदले की भावना से एक साजिश रचता है जो पूरे पश्चिमी जगत और अमेरिका को नाको चने चबाने को मजबूर कर देता है.

अचानक से इंग्लैंड के प्रधानमंत्री को पड़ा हार्ट अटैक पूरी दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों को उनके फ्यूनरल पर आने को मजबूर कर देता है. सभी लंदन में उनके फ्यूनरल में इकट्ठे ही हुए होते हैं कि आतंकवादी हमले पूरे लंदन को अपने गिरफ्त में ले लेते हैं. चुन-चुन कर हर देश के राष्ट्राध्यक्ष मारे जाते हैं पर अमेरिकन राष्ट्रपति के व्यक्तिगत सुरक्षाकर्मी की मशक्कत के कारण राष्ट्रपति बच जाते हैं. झल्लाया आमिर राष्ट्रपति के पीछे पड़ा है और झल्लाहट में शुरु होता है सिहरन पैदा करने वाला नरसंघार.

एक ओर जहां आधुनिक टेक्नोलॉजी और सैकड़ों आतंकवादी हैं जो राष्ट्रपति के पीछे पड़े हैं तो वहीं दूसरी तरफ पिछली बार की तरह माइक ने राष्ट्रपति को बचाने का जिम्मा अकेले ही उठा रखा है.

लुका-छिपी, पार्शियल जीत-हार, गुस्सा, राष्ट्रभक्ति और आतंकवाद का भयावह चेहरा दिखाते हुए फिल्म एक खतरनाक और दर्दनाक अंत तक पहुंचती है पर क्लाइमैक्स रोचक बन बैठता है. फिल्म में कुछ चीजें सस्पेंस के तौर पर रखी गई हैं. इसलिए फिल्म में आपकी रुचि बनी रहे, मैं सब कुछ बताने से बचना चाहता हूं. फिल्म का सब कुछ जानने के लिए दर्शकों को फिल्म देखनी पड़ेगी.

फिल्म की कहानी पूरी तरह से नई नहीं है. पर कहानी की पेशकश रोचक है. इसके पहले भी इस कहानी से मिलती जुलती फिल्में हॉलीवुड में बन चुकी हैं. उदाहरण के लिए ‘व्हाइट हाउस डाउन’ और ‘ओलम्पस हैज फॉलेन’ वो फिल्में हैं जो इस पैटर्न पर बन चुकी हैं. और वैसे भी ये फिल्म ‘ओलम्पस हैज फॉलेन’ का सीक्वल है.

फिल्म का टेक्नीकल पार्ट बहुत अच्छा है स्पेशल इफेक्ट्स का प्रयोग हुआ है. पर हॉलीवुड के लिहाज से ये नया नहीं है. इसके पहले भी शहरों का बर्बाद होना और पुलों का टूटना हॉलीवुड में अच्छे से फिल्माया जा चुका है. पर आपको इन घिसी – पिटी चीजों का फिल्मांकन फिल्म से बांधने के लिए काफी है.

अमेरिकन राष्ट्रपति के रूप में Aaron Eckhart  जंचे हैं वो तब और अच्छे लगते हैं जब विपरीत परिस्थितियों में भी मस्खरी करने से बाज नहीं आते हैं. उप राष्ट्रपति का रोल प्ले कर रहे फ्रीमैन मॉर्गेन वैसे भी जाने माने और ऊंचे ओहदे के अभिनेता हैं सो उन्होंने अपना काम तल्लीनता से किया है.

माइक का रोल अदा करने वाले Gerard Butler जो कि इस फिल्म में लीड रोल में हैं ने अपना वही पुराना चार्म स्थापित रखा हुआ है. जो ओलम्पस हैज फॉलेन में था. उनकी पहचान भारतीय दर्शकों के बीच 2007 में आई फिल्म 300 मूवी से ही बन चुकी थी. फिल्म में उनका ऐट्टीट्यूड वाला हाव-भाव उनको अलग बनाता है. इत्तेफाक से उनकी फिल्म गॉड ऑफ इजिप्ट भी पिछले हफ्ते ही रिलीज हुई है.

फिल्म क्यों देखें…

1. अगर आपने ओलंपस हैज फॉलेन देखी हुई है और पसंद की है तो ये फिल्म भी आपको अच्छी लगेगी.

2. फिल्म में जागी राष्ट्रभक्ति की भावना को समझने के लिए. ये समझने के लिए भी कि ये सिर्फ बॉलीवुड का ही पार्ट नहीं है बल्कि हॉलीवुड का पार्ट भी है.

3. लंदन जैसे बड़े शहर के नेस्तांबूद होती हुई भयावह तस्वीर देखने के लिए.

4. ये फिल्म आपको ये सोचने के लिए कई बार मजबूर करेगी कि जो आतंकवादी चेहरा इस फिल्म में दिखाया गया है वो अगर सच में सामने आ गया तो क्या होगा ?

5. फिल्म का सबसे जबरदस्त पार्ट है फिल्म के हीरो Gerard Butler, उन्होंने वो सभी चीजें दिखाई हैं जो उन्हें भारतीय हीरो की तरह स्थापित करता है. उनका ऐट्टीट्यू़ड भारतीय दर्शकों को पसंद आएगा क्योंकि वो कमाल है.

क्यों न देखें

1. घिसी-पिटी कहानी के लिए.

2. पुराने स्पेशल इफेक्ट्स देख-देखकर आप पक चुके हैं तो.

3. फिल्मे में हीरोइन नदारद है.

4. फिल्म कहीं कहीं खिंचती है जिसेस फिल्म की रफ्तार में कभी कभी ब्रेक लग जाती है.

लेखक फिल्म पत्रकार हैं.

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