फिल्म समीक्षा : तेरा सुरूर

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सर्वजीत सिंह चौहान

शुरुआत साल 2007 से हुई थी. पहले आई आपका सुरूर फिर कर्ज़,  रडियो,  कजरारे और खिलाडी 786. दो साल पहले हिमेश ‘एक्सपोज़’ में भी दिखे थे. इन सभी फिल्मों की खासियत सिर्फ इतनी ही थी की हिमेश इन सभी फिल्मो का हिस्सा रहे है. तेरा सुरूर इन फिल्मो की कतार में अगला नाम है.

नवोदित डायरेक्टर शॉन अरनहा के डायरेक्शन में हिमेश रेशमिया ने फिर से अपने म्यूजिक की मदद से एक स्थापित कलाकार होने की कोशिश की है.

गैंगस्टर रघु (हिमेश) अपनी गर्लफ्रेंड तारा (फरहा) के साथ मुम्बई में रहता है. तारा को इस बात का पता नहीं है की रघु एक गैंगस्टर है. किन्ही कारणों से दोनों में खटास आ जाती है और नाराज़ तारा आयरलैंड चली जाती है. तारा किसी छिपे हुए चालबाज़ और जालसाज़ का शिकार होकर ड्रग्स के झूठे केस में फंस जाती है और जेल चली जाती है. रघु उसे छुडाने के लिए आयरलैंड जा पहुचता है.

पर वहां उसकी राह आसान नही है. जहां एक ओर उसे वकील (मोनिका ), कॉन आर्टिस्ट (नसीरुद्दीन शाह) और इंडियन एम्बेसडर (शेखर कपूर) जैसे दोस्त मिलते है तो वही उसका मुकाबला कुछ खतरनाक लोगो से भी होता है. एक ओर इंडियन ऑफिसर कबीर बेदी, रघु के गैंगवार की वजह से रघु के पीछे पड़ा है तो दूसरी तरफ एक न दिखने वाला और अंजान चेहरा उसकी जान के पीछे पड़ा है.

कॉन आर्टिस्ट बर्ड( नसीर) के साथ मिलकर रघु, तारा को जेल से भगाने का प्लान बनाता है पर ये प्लान उसे भारी पड़ता है और पूरी डबलिन पुलिस उसके और तारा के पीछे हाथ धो के पड़ जाती है. क्या रघु उस अनजान चेहरे को ढूंढ पता है और क्या इन सब परेशानियो का सामना करके वो वापस इंडिया आ पाता है? यही गढ़ते-गढ़ते फ़िल्म क्लाइमेक्स पा लेती है.

डायरेक्टर शॉन इसके पहले लक्ष्य और शूटआउट ऐट लोखंडवाला जैसी फिल्मो के असिस्टेंट डायरेक्टर रहे है और इस फ़िल्म का डायरेक्ट किया है जो बेहद ही खराब और बीमार है. उन्होंने कैमरे के पीछे से नौसिखिये की तरह फ़र्ज़ अदायगी की है. बिना शादी के ही रघु, तारा को हैप्पी एनिवर्सरी क्यों बोलता है ? क्या इस बात का उन्हें ख़याल भी नहीं आया ?

उन्होंने फ़िल्म की चमक-धमक में इतना ध्यान लगा दिया है की बाकी सब कुछ भूल गए है. फ़िल्म के बहुत बड़े पार्ट का फिल्मांकन साउथ इंडियन फ़िल्म की तरह किया है.

कहानी नाम की कोई चीज़ है ही नहीं. फ़िल्म देखते हुए ऐसा लगता है की कहानी पहले से न लिख के रोज के शूट के हिसाब से लिखी गयी है. डायरेक्टर और राइटर को ये पता ही नहीं है की वो दिखाना क्या चाह रहे है.

फ़िल्म बेतरतीब बहते बहते ख़त्म हो जाती है. ये समझ से परे है की नसीर और शेखर कपूर जैसे अंतर्राष्ट्रीय छवि वाले एक्टर्स ने इस फ़िल्म में एक्टिंग क्यों की. हिमेश को हीरो बनाने के प्रेशर में सब कुछ इस तरह बिगड़ा है की फ़िल्म बोरिंग और उबाऊ हो गयी है. हिमेश की फिल्मों की एक खास बात होती है की उनकी हर फ़िल्म में एक चमकदार और ख़ूबसूरत चेहरे वाली हीरोइन होती है.

फरहा खूबसूरत है पर सिर्फ खूबसूरत ही है. छोटे कपड़े पहन कर दर्शको को बहुत देर तक नहीं बाँधा जा सकता बल्कि एक्टिंग ज्यादा महत्व रखती है पर वो एक्टिंग में फिसड्डी है. एक्टिंग में तो हिमेश ने हद ही कर दी है. उन्होंने बॉडी बनाई है, फाइट की है पर एक्टिंग में निराश किया है. इससे अच्छी एक्टिंग उन्होंने खिलाडी 786 में की थी.

सीन चाहे गुस्से वाला हो या प्यार वाला, हर जगह उन्होंने चेहरे में एक ही भाव रखा है. वो ये बात अभी तक एक्सेप्ट नहीं कर पाये की एक्टिंग करने के लिये एक्टिंग ही करनी पडती है सिर्फ फ्लैट और इंटेंस लुक वाले फेस से दर्शक में खीज़ पैदा होती है. शुरू से अंत तक उन्होंने बहुत ही कम डॉयलॉग बोले है. ज्यादातर दृश्यों में तो वो बैकग्राउंड में सिर्फ कहानी ही सुनाते हुए सुनाई देते है. ऐसा करके वो एक्टिंग करने से बचते हुए नज़र आये है.

फ़िल्म में अगर कुछ अच्छा है तो वो है फ़िल्म का गीत संगीत. गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में नाम दर्ज़ करा चुके समीर अंजान ने अच्छे और दिलो को छू जाने वाले गाने लिखे है जिसे खुद हिमेश ने अपने म्यूजिक से सजाया है. पूरी फ़िल्म में बैकग्राउंड में बज रहा तेरा सुरूर गाना अच्छा लगता है. मेरा यार मिला दे मुझको का रीमिक्स अच्छा बन पड़ा है. मै वो चाँद, बेखुदी और वफ़ा ने बेवफाई गीतों में दर्शको को सुरूर चढाने वाला नशा है.

क्यों देखें फिल्म…

1. तेरा सुरुर गाने को हॉल में सुनके आपकी 10 साल पहले की यादें ताजा हो जाएंगी.

2. शेखर कपूर और कबीर बेदी जैसे वर्ल्ड क्लास ऐक्टर्स को एक ही फिल्म में देखने के लिए.

3. अच्छे गानों और अच्छे लोकेशन्स के लिए.

4. हिमेश को हीरो के तौर पर देखने के लिए.

क्यों न देखें फिल्म

1. कहानी का कोई सिर-पैर नहीं है

2. हिमेश ने अपना प्रेशर कुछ इस तरह से डाला है कि हीरो बनने के चक्कर में उन्होंने फिल्म की मिट्टी पलीत कर दी है.

3. लीड रोल में आई फरहा सिर्फ खूबसूरत हैं क्योंकि ऐक्टिंग के नाम पर उन्होंने सिर्फ सनी लियोनी की नकल की है. आप समझ सकते हैं कि उन्होंने कितनी बुरी ऐक्टिंग की होगी.

4. जब फिल्म में कुछ करने के लिए नहीं रहता तो गाने बजाके फिल्म आगे बढ़ा दी जाती है.

5. हिमेश ने एक ही जैसा एट्टीट्यूड फॉलो किया है. ऐसा लगता है जैसे उन्होंने कैमरामैन को ये हिदायत दे रखी थी कि उन्हें बार बार एक ही एंगल से शूट किया जाए.

6. रुपयों की बचत के लिए.

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