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फिल्म समीक्षा : जय गंगाजल

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सर्वजीत सिंह चौहान

प्रकाश झा की ‘गंगाजल’ और ‘जय गंगाजल’ में एक बहुत बड़ा फर्क ये है कि पिछली फिल्म के वो निर्देशक थे पर इस बार उन्होंने निर्देशन के साथ-साथ स्क्रीनप्ले, प्रोड्यूसर और ऐक्टिंग में भी हाथ आजमाया है. प्रकाश झा की अपनी एक धारा है और वो उसी धारा में बहते हुए फिल्में बनाते हैं. पिछले फिल्मों की तरह ही इस फिल्म में भी उन्होंने करप्शन, सामाजिक बुराइयों, सड़ चुके सिस्टम पर सवाल उठाते हुए उसका हल देने की कोशिश की है. पर भरपूर बॉलीवुडिया मसाले के साथ.

PS आभा माथुर(प्रियंका चोपड़ा) को बांकीपुर जिले में एसपी के पद पर तैनाती मिली है जहां पहले से ही जंगलराज फैला हुआ है. वहां के एमएलए बबलू पांडेय की छाया तले ही ये जंगलराज फल फूल रहा है. मुनामरदानी(मुरली शर्मा) और डबलू पांडेय(राहुल भट्ट) की डायरेक्ट और अपनी इन डायरेक्ट गुंडागर्दी की मदद से वो गरीब किसानों की जमीनों को बिना कोई कानूनी प्रक्रिया के हथिया रहा है. उस जमीन पर वो एक बड़ी कंपनी से हाथ मिलाकर पावर प्लांट लगाना चाह रहा है. गरीब किसानों की आत्महत्या के लिए मजबूर किया जा रहा है और जो खिलाफ आवाज उठाता है उसको या तो मार दिया जाता है या डरा धमका कर शांत कर दिया जाता है. इस काम में पुलिस, प्रशासन भी बबलू पांडेय की मदद करता है.

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डीएसपी भोला नाथ सिंह(प्रकाश झा) की मदद से वो कुकृत्यों पर परदा डालता रहता है पर अचानक से ऐक्शन में आई आभा माथुर(प्रियंका चोपड़ा) सब कुछ बदलकर रख देती है. लोगों के मन में छुपा हुआ आक्रोश उनके आने से बाहर आ जाता है. चीजें विधायक के खिलाफ होने लगती हैं. झल्लाहट में वो कुछ गलत कदम उठाता है और चीजें बदल जाती हैं फिल्म अच्छाई और बुराई की लड़ाई में बदल जाती है. जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं कि बॉलीवुड फिल्मों में जीत अच्छाई की ही होती है. इस फिल्म में भी हुई है. पर बेहद ही रोचक और मसालेदार ढंग से. फिल्म में कलाकारों ने अच्छी मेहनत की है.

एसपी आभा माथुर के रोल में प्रियंका चोपड़ा संयमित एंव दिलेर दिखी हैं. करप्ट विधायक के रूप में मानव कौल ने स्थानीय देसी भाषा का प्रयोग करते हुए दर्शकों के मन में अपने लिए नफरत पैदा की है. खिले और हंसते हुए चेहरे के पीछे छिपे दुर्दांत को उन्होंने बखूबी निभाया है. राहुल भट्ट और मुरली शर्मा ने देसी गुंडों के रूप को बहुत ही अच्छे रूप से प्रदर्शित किया है. खासकर मुरली शर्मा ने अपना मंझा हुआ कलाकार बाहर निकाला है. ये अफसोस का विषय है कि उन्हें बड़ी फिल्मों में सिर्फ छोटे रोल ही क्यों मिलते हैं. अब बात करें प्रकाश झा की तो वो प्रियंका चोपड़ा के अलावा फिल्म का दूसरा स्पेशल चार्म हैं. करप्ट पुलिस ऑफिसर और फिर हृदय परिवर्तन के बाद के पुलिस अफसर दोनों को उन्होंने जीवंत कर दिया है.

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कहानी में नयेपन के नाम पर इतना है कि इस बार फिल्म में ‘राजनीति’ के बाद सबसे ज्यादा मसाला है. फिल्म ‘गंगाजल’ का सीक्वल है इसलिए वही पैटर्न लेकर आगे बढ़ती है फिल्म की कहानी कभी ‘गंगाजल’ तो कभी ‘अपहरण’ से अटैच होती नजर आती है.

निर्देशन के मामले में प्रकाश झा बेहतर निर्देशक की श्रेणी में हैं. उन्होंने निर्देशन में कमाल किया है. सही कहा जाए तो ‘सत्याग्रह’ और ‘आरक्षण’ जैसी कुछ पिट चुकी फिल्मों के बाद उन्होंने वापसी की है. फिल्म का गीत-संगीत देसी है. फिल्म में गीतों की जरूरत नहीं थी इसलिए जो भी गीत हैं वो थोड़ी-थोड़ी देर के लिए बैकग्राउंड में ही बजते हैं. पर अच्छे लगते हैं. एक देसी लोकगीत को उन्होंने मोबाइल का रिंगटोन बना के सुना दिया है.

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फिल्म की भाषा फुल देसी है. जो कहानी को ठीक से पेश करने में मददगार हो और खासकर उत्तर भारतीयों को ज्यादा अंदर तक टच देने में सहायक है.

फिल्म को क्यों देखें…

1. प्रकाश झा के अरसे बाद के उम्दा निर्देशन के लिए

2. प्रियंका चोपड़ा के लिए क्योंकि अगर आप उनके फैन नहीं तो हो जाएंग और अगर हैं तो फिर से हो जाएंगे. वो हॉलीवुड का चेहरा क्यों बन रही हैं इस बात को उन्होंने फिल्म में जस्टिफाई किया है.

3. मानव कौल, मुरली शर्मा, राहुल भट्ट और अन्य दूसरे नये-पुराने चेहरों की उम्दा कलाकारी के लिए.

4. देसी भाषा और देसी मिजाज की अच्छी झलक के लिए.

5. फिल्म की सबसे शानदार उपस्थिति के लिए ये फिल्म देखते हुए लगता है कि शायद वो ऐक्टिंग में पुराने कलाकारों की तरह उम्दा श्रेणी के ऐक्टर हैं.

6. रियलिटी के साथ मसाला देखने के लिए.

7. फिल्म में गरीब किसानों की आत्महत्या के पीछे के कारणों को समझने के लिए.

8. फिल्म के जबरदस्त डायलॉग्स इतने रोचक हैं कि दर्शकों के रोयें खड़े कर देते हैं. एक सिपाही के मुंह से बोला ये डायलॉग- मैडम सर आपने तो हमें मर्द बना दिया. वरना हम तो नपुंसक मर जाते. कमाल कर जाता है. खाकी वर्दी में बाहुबली ना बनिए और एक गुंडे के मुंह से बोला गया ये डायलॉग कि आपका डिपार्टमेंट नपुंसक हो गया है. सटायर है.

फिल्म क्यों न देखें..

1. कहानी के नयेपन के लिहाज से नई नहीं है. प्रकाश झा खुद की ही फिल्मों की नकल लगती है.

2. रियलिज्म को लेकर चल रही फिल्म अचानक से मसाले में बदल जाती है. जो कचोटती है.

3. प्रियंका चोपड़ा इस फिल्म में लीड में हैं. पर प्रकाश झा ने उनका स्क्रीन टाइम कम करके अपना स्क्रीन टाइम बढ़ा लिया है. और खुद हीरो बनने के चक्कर में उन्होंने फिल्म में ब्लैक्सिबिलिटी लाके कसाव को कमजोर कर दिया है. कहीं कहीं फिल्म रायते की तरह फैली हुई नजर आती है.

4. फिल्म अचानक से रियलिटी से परे हटकर हीरो और विलेन की लड़ाई में तब्दील हो जाती है.

5. गानों की कमी खलेगी अगर आप संगीत प्रेमी हैं.

लेखक www.faltukhabar.com के फिल्म पत्रकार हैं. ये लेख उन्होंने मूल रूप से उसी वेबसाइट के लिए लिखा है.

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