फिल्म समीक्षा : कैप्टन अमेरिका – सिविल वॉर
सर्वजीत सिंह चौहान
‘कैप्टन अमेरिका-सिविल वॉर’ एंथोनी रसो और जो रसो के निर्देशन में मॉर्वल कॉमिक्स की एवेंजर्स-एज ऑफ अल्ट्रॉन की अगली खेप है. फिल्म की कहानी एवेंजर्स से आगे की है पर कहानी का अपना इतिहास भी है. कहानी शुरू होती है 16 दिसंबर 1991 से. जब एक विंटर सोल्जर बकी(सेबेस्टियन स्टैन) एक सीरम पाने के लिए कुछ कत्ल कर देता है.
निर्देशक और लेखक ने दुनिया की व्यवहारिक समझ दिखाते हुए इस बात को स्वीकार किया है कि कुछ अच्छा करने में कुछ बुरा भी होता है. सभी एवेंजर्स ने दुनिया को कई बार बचाया है. दुनिया इसका एहसान भी मानती है लेकिन उन मासूम लोगों का क्या जो इस दुनिया को बचाने की जद्दोजहद में मारे गए हैं. इसी बात को लेकर पूरा विश्व एवेंजर्स की जवाबदेही तय करना चाहता है. दबाव बढ़ चुका है, संयुक्त राष्ट्र सभी एवेंजर्स को बुलाकर उन्हें एक निश्चित सरकारी महकमे के ऑर्डर्स पर काम करने के लिए मजबूर करता है.
एवेंजर्स टीम इस जवाबदेही के सवाल में उलझकर दो धड़ों में बंट जाती है. एक धड़ा टोनी स्टार्क यानी की आयरन मैन(रॉबर्ट डाउनी जूनियर) का है जो इस समझौते पर हस्ताक्षर करना चाहता है पर दूसरी तरफ कैप्टन अमेरिका(क्रिश इवेंस) के पास कुछ सवाल हैं. वो इन सबके खिलाफ चला जाता है. कैप्टन अमेरिका के सवाल वाजिब हैं. वो इस बात की गारंटी चाहता है कि उसकी टीम का इस्तेमाल कहीं किसी राजनीतिक फायदे के लिए तो नहीं होगा. मतभेद की वजह से एवेंजर्स दो टीमों में बंट जाते हैं और एक दूसरे के खिलाफ खड़े हो जाते हैं कहानी और दिलचस्प हो जाती है जब मतभेद, मनभेद बन जाता है. और सब एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं.
फिल्म की कहानी ऐसे बुनी गई है कि कहीं से भी उसकी पकड़ कमजोर नहीं होती है. कहानी के दो पहलू हैं एक वो वर्तमान जो आयरन मैन सीरीज, कैप्टन अमेरिका सीरीज, एवेंजर्स सीरीज के आगे बढ़ती है तो दूसरा वो कचोटता इतिहास जहां से उसकी नींव पड़ी है. कहानी का ताना-बाना अच्छे से बुना गया है.
फिल्म की स्क्रिप्ट पर अच्छा काम किया गया है. फिल्म का हर डायलॉग वो चाहें मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर हो या ताकत के मायने पर हो या फिर संबंधों पर, वजन रखता है.
प्रोडक्शन हाउस ने पैसा खर्च करने पर कोई कोताही नहीं बरती है. फिल्म में अच्छे वीएफएक्स और अच्छे स्पेशल इफेक्ट्स का इस्तेमाल हुआ है. जिससे फिल्म भव्य बन गई है.
फिल्म के एक्शन सीन रोचक हैं और एवेंजर्स-एज ऑफ अल्ट्रॉन की याद दिलाते हैं. लड़ती हुई ब्लैक वीडो(स्कॉरलेट जोहॉनसन) जीतते हुए तो अच्छी लगती ही है पर हारते हुए भी एक्शन पर की गई अपनी मेहनत की वजह से अच्छी लगती हैं. कैप्टन अमेरिका और आयरन मैन का लड़ने का अपना स्टाइल है. वो लड़ते हुए विध्वंसक लगते हैं. आन्ट्स मैन, बो मैन(जेरेमी रेनर) और टीम में नये-नये भर्ती हुए दो नये सुपर हीरो ब्लैक पैंथर्स और स्पाइडर मैन अच्छे लगे हैं. सबने अपने अपने रोल के साथ वफादारी की है.
फिल्म की कहानी लाजवाब है. काफी उतार-चढ़ाव और सस्पेंस भी है इसलिए फिल्म आपको पसंद आए इस दबाव पूरी कहानी खोलना ठीक नहीं होगा.
फिल्म को क्यों देखें…
1. एक बार फिर से कैप्टन अमेरिका और आयरन मैन को एक साथ देखने के लिए.
2. अच्छे एक्शन सीन के लिए. खास तौर पर स्कॉरलेट जोहानसन की कमाल की तेज मार्शल ऑर्ट का लुत्फ उठाने के लिए.
3. सबके दुलारे और मशक्कत करने वाले और फिल्म में जान डालने वाले पीटर पार्कर(स्पाइडर मैन) के लिए. जो फिल्म में अपनी उपस्थिति मजबूत तरीके से दर्ज कराता है.
4. विध्वंसक लड़ाई में टूटती बिल्डिंग, उड़ते सुपर होरो और कमाल के दूसरे एक्शन सीन को अपने अगल-बगल 3डी में मसहूस करने के लिए.
5. अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के दबाव को समझने के लिए.
फिल्म को क्यों न देखें..
1. अगर आप सोचते हैं कि सुपर होरो से लैस होने के कारण ये बच्चों के लिए है तो रुकिये आप गलत हैं क्योंकि विध्वंसक मार-काट उन्हें विचलित कर सकती है और दुनियादारी की समझ न होने के कारण फिल्म उनको पंसद नहीं आएगी.
2. अपने प्यारे सुपर हीरोज़ को एक दूसरे के खून का प्यासा देखने पर आपको बुरा लगे तो.
3. हल्क और थॉर के दीवानों को उनकी कमी खलेगी. वो फिल्म का हिस्सा नहीं हैं.
4. फिल्म में कुछ एक जगह लंबी बातचीत बोझिल हो जाती है.
5. अगर आप पारंपरिक भारतीय सिनेमा को पंसद करते हैं जिन्हें सिर्फ नाच गाना और इमोशन पर ही तसल्ली मिल जाती है तो.
फिल्म का ट्रेलर यहां देखें…
लेखक www.faltukhabar.com के फिल्म पत्रकार हैं.