फिल्म समीक्षा : अजहर

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सर्वजीत सिंह चौहान

टोनी डीसूजा ने ऐसे क्रिकेटर को पर्दे पर उतारा है जिसने डेढ़ दशक से ज्यादा भारतीयों के दिलों पर राज किया उन्हें खुशी दी, आंसू दिए. नाम है मोहम्मद अजहरुद्दीन. हैदराबाद का एक सामान्य परिवार का लड़का अपनी मेहनत से भारतीय क्रिकेट टीम में जगह बना लेता है और फिर अपनी काबिलियत के दम पर और सेलेक्टर्स का विश्वास जीतकर कैप्टन बन जाता है. टीम इंडिया को बेहतर टीम बनाता है. पर अचानक से उसकी जिंदगी में भूचाल आ जाता है. अजहर पर मैच फिक्सिंग का आरोप लगता है और उसे बैन कर दिया जाता है. देखते  ही देखते उसकी दुनिया बदल जाती है और फिर क्या – क्या होता है ये बताने की जरूरत नहीं है. हर इंडियन क्रिकेट प्रेमी इस पूरी कहानी से वाकिफ हैं.

रजत अरोड़ा ने कहानी सच्ची घटना पर आधारित ही लिखी है पर उन्होंने भारतीय सिने प्रेमियों के लिहाज से पूरी फ्लेक्सिबिलिटी का इस्तेमाल किया है. निर्देशन टोनी डीसूजा ने किया है इससे पहले उन्होंने बॉस और ब्लू जैसी फिल्मों का निर्माण किया है जो ठीक-ठाक कमाल नहीं दिखा पाई थी. इस बार उन्होंने स्पोर्ट्स बायोग्रैफिकल फिल्म बनाई है लेकिन फिल्म को पूरी तरह से बॉलीवुडिया कर दिया है. फिल्म की स्टोरी लाइन ठीक चलती है. बार – बार बैकग्राउंड में जाकर वापस आना ये सब अच्छे ढंग से पेश किया गया है जो दर्शकों की समझ में आता है. पर फिल्म में मसाला ज्यादा डालने के चक्कर में उन्होंने मसाले को जला दिया है.

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कुछ कुछ जगहों पर तो फिल्म, विशुद्ध मसाला फिल्म लगने लगती है. प्रोडक्शन हाउस ने कोताही नहीं बरती है फिल्म की मांग के हिसाब से रुपये खर्च किए हैं. दुनिया के बड़े इंटरनेशनल स्टेडियम पर शूटिंग हुई है. ओवल और लॉर्ड्स जैसे चिल्लाते हुए दर्शकों की भीड़ से भरे  स्टेडियम रोमांच का अहसास पैदा करते हैं. अजहर के रोल में इमरान अच्छे लगे हैं. उनकी ऊपर चढ़ी हुई कॉलर और अजहर जैसा लुक फील कराने में मददगार हुए हैं. पर डायलॉग डिलिवरी के मामले में वो अजहर कम इमरान हाशमी ज्यादा लगे हैं. ये फिल्म उनकी उस गैम्बलर और सीरियल किसर के रूप का ज्यादा अहसास कराती है जो उन्होंने पिछले दशक में अपना के रखा था. संगीता के रोल में नरगिस फाखरी ने कुछ भी नहीं किया है या तो वो हंसी हैं या फिर रोई हैं ये सब करते हुए वो प्रभावित नहीं करती हैं. प्राची देसाई काफी समय बाद दिखी हैं और उन्होंने अजहर की पहली बीवी का किरदार बड़ी सिद्दत से निभाया है. उन्होंने उस नजाकत को बनाकर रखा है जो एक इंडियन मिडिल क्लास फैमिली की बहू बनाकर रखती है.

अजहर के दोस्त और वकील बने कुणाल रॉय कपूर ने तालियां बटोरी हैं. हर बार उनकी उपस्थिति स्क्रीन में चमक पैदा करती है. उनके बोलने पर उनके आने पर उनके द्वारा निभाये गए हर कोर्ट सीन पर हंसी अपने आप आती है. उनका किरदार साउथ इंडियन का है. शुरुआत में तो कमजोर पर धीरे-धीरे उनकी साउथ इंडियन टच  हिंदी संवाद अदायगी अच्छी हो गई है. लॉयर बनी लारा दत्ता ने अच्छी परफॉर्मेंस दी है. वो एक अच्छी अभिनेत्री हैं इसीलिए उनका स्क्रीन टाइम बाकी दो अभिनेत्रियों से ज्यादा है. पर हाई हील्स पर स्कर्ट पहने हुई चलती हुई लारा दत्ता ऑकवर्ड लगी हैं. बुकी के रूप में राजेश शर्मा ने बुकी का आभासी किरदार अच्छे से पेश किया है. फिल्म में अरिजीत की आवाज में गाने अच्छे लगे हैं. ‘ओये ओये’ रिमिक्स अच्छा लगता है लेकिन फिल्म में नाम मात्र के लिए ही है. ‘बोल दो ना जरा’ एक अच्छा रोमांटिक सॉन्ग है. पर फिल्म में वो जगह घेरते नजर आए.

फिल्म क्यों देखें –

  1. उम्दा क्रिकेटर अजहरुद्दीन के लिए
  2. फिल्म के उम्दा डायलॉग्स के लिए. जैसे जब छाती में इंडिया लिखा हो न तो दिल नहीं भरता और मुंह की जगह बैट से बोल बेटा.. ऐसे बहुत से डायलॉग्स हैं जो अच्छे लगे हैं.
  3. मसाला के साथ बायोग्राफी का आनंद लेने के लिए
  4. इमरान हाशमी के लिए, वो बहुत दिनों बाद अपने पुराने अंदाज में वापस लौटे हैं
  5. वो मसखरी करते हैं औऱ स्मूच भी
  6. भारतीय क्रिकेट की 80 के दशक से बदलती हुई तस्वीर और बढ़ते हुए रुतबे को देखने के लिए.
  7. अजहर को लोग तीन बातों के लिए जानते हैं एक खुदा पर विश्वास, दो शादियां, और तीन टेस्ट में शानदार सेंचुरी.

 

क्यों न देखें

  1. भाग मिल्खा भाग और पान सिंह तोमर जैसी बायोग्राफिकल सिनेमा नहीं है, इसलिए ये भ्रम हटा दें
  2. फिल्म में मसाला ज्यादा है, कहानी रोक कर डाले गए गाने इसका सबूत हैं.
  3. इंटरवल आते आते फिल्म स्पीड तो पकड़ती है लेकिन उसके बाद रायते की तरह फैलने लग जाती है
  4. सच्ची घटना से प्रेरित होने के बावजूद हर कोर्ट सीन और वहां बोले गए डॉयलॉग इतने फिल्मी हैं कि आपको पुराना भारतीय सिनेमा याद आ जाएगा.
  5. सन 1991 में देश में सौ करोड़ जनता थी क्या ? निर्देशक ने होमवर्क की कमी कर दी है.
  6. सिर्फ ‘बड़े भाई’ बोल देने से और कॉलर ऊपर कर लेने से कोई अजहर नहीं बन जाता. ये बात न तो इमरान को और न ही निर्देशक को समझ आई. इमरान अपने पुराने फ्लो में इतने बह गए कि वो अजहर कम इमरान ज्यादा लगने लगे.

 

फिल्म का ट्रेलर यहां देखें…

लेखक www.faltukhabar.com के फिल्म पत्रकार हैं.