Central Pollution Control Board के अनुसार देश में हर दिन 15,000 Ton Plastic Waste निकलता है. एक तरफ जहां कई सरकारी संगठन और NGOs Plastic के उपयोग को कम करने के लिए काम कर रहे हैं, वहीं मदुरIई का एक इंसान है जो मानता है कि Plastic में एक अद्भुत संसाधन बनने की क्षमता है. इस इंसान ने ये साबित भी कर दिया है.
राजगोपालन वासुदेवन ही वो इंसान हैं जिनकी बनायी तकनीक की बदौलत 11 राज्यों में 5,000 km की अनोखी Plastic की सड़क का निर्माण किया जा रहा है. अब ये ‘The Plastic Man of India’ के नाम से प्रसिद्ध हो रहे हैं. वासुदेवन मदुरई में Chemistry के Professor हैं, जिन्होंने एक ऐसी अद्भुत तकनीक खोज निकाली है जिसकी मदद से Plastic Waste का पुनः उपयोग कर के सड़कें बनायीं जा सकती हैं. वासुदेवन की ये तकनीक पूरी तरह Eco-friendly है.
ये अनूठी तकनीक ‘जुगाड़’ का सटीक उदाहरण है. जहां सरकार मानसून में खराब न होने वाली रोड बनाने के लिए करोड़ों खर्च करती है, वहीं ये तकनीक न सिर्फ पर्यावरण-हितैषी है बल्कि कम लागत वाली भी है. यही नहीं, आम रोडों की तुलना में इनकी देख-रेख करना भी आसान है. ये रोड अन्दर से खोखली होती हैं, इनमें Pipelines भी आसानी से बिछायी जा सकती हैं. इसके अतिरिक्त, वासुदेवन बताते हैं कि इनके निर्माण में बड़ी मशीनों की भी ज़रुरत नहीं होती. इन्हें कारखानों में बना कर सीधे ही लगाया जा सकता है, जिससे Onsite निर्माण की लागत में भी कमी आती है.
वासुदेवन बताते हैं कि इस तरह सड़क बनाने के अनेक फायदे हैं. इस तरह बनायीं गयी रोडों को क्षति होने की सम्भावना भी आम रोडों की तुलना में कम रहती है. इस तकनीक का आविष्कार करने का सफ़र वासुदेवन के लिए आसान नहीं था. इस तकनीक पर वो 2001 से काम कर रहे हैं, उनकी University ने भी उन्हें आवश्यक संसाधन प्रदान कर के इस परियोजना में उनका पूरा साथ दिया.
वासुदेवन के अपने देश को ये तकनीक तब तक विश्वसनीय नहीं लगी थी जब तक, Netherland ने इसे नहीं अपनाया. इसलिए ऐसा आविष्कार करने के कई दिनों बाद तक ये अपनी किस्म का हीरो अपने ही देश में गुमनाम रहा. 2004 में उन्हें इस Idea को तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के सामने प्रस्तुत करने का मौका मिला. वो इससे प्रभावित हुयी और तुरंत ही इस तकनीक से 1,000 km की रोड बनाने की मंजूरी दे दी.
वासुदेवन ने एक ऐसी समस्या का समाधान खोज निकाला है जिससे केवल भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया का हर देश जूझ रहा है. हर साल 500 Billion Plastic Bags विश्व भर में इस्तेमाल होते हैं, जिन्हें इस्तेमाल के बाद पूरी तरह नष्ट किया जाना संभव नहीं होता.
हो सकता है इस तकनीक को पूरी तरह इस्तेमाल करने में सालों का समय और करोड़ों रूपये लग जायें पर इसका परिणाम अच्छा ही होगा. ये एक ऐसा आविष्कार है जो न सिर्फ हमरे पर्यावरण को प्रदूषण-रहित बनाएगा, बल्कि हमें सतत-विकास की ओर भी ले जायेगा.
Source: Homegrown