अगर सेना का सही इस्तेमाल होता तो आज POK हमारा होता: वायुसेना प्रमुख

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वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अरूप राहा ने आज संकेत दिया कि अगर देश ‘उच्च नैतिकता’ का रास्ता अपनाने के बदले सेना समाधान की दिशा में बढ़ता तो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) भारत का हिस्सा होता. राहा ने यह भी कहा कि 1971 के भारत-पाक युद्ध तक भारत की सरकार ने वायु शक्ति का पूरा इस्तेमाल नहीं किया.

आपको बता दें कि पाकिस्तान के साथ जंग में वायुसेना का इस्तेमाल कम हुआ था. सिर्फ 1971 में वायुसेना पूरी ताकत से जंग में उतरी थी. 1965 की जंग में वायुसेना का इस्तेमाल नहीं हुआ था. वहीं 1947 और 1999 के करगिल युद्ध में वायुसेना की भूमिका सीमित रही थी.

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उन्होंने कहा कि विरोधियों का प्रतिरोध करने में, टकराव टालने में और जब भी पहले कभी देश को संघर्ष में शामिल होना पड़ा, एक देश के रूप में भारत सेना की शक्ति खासकर वायु शक्ति का उपयोग करने में ‘अनिच्छुक’ रहा था. राहा ने साफ-साफ बयान देते हुए पीओके को ‘हमेशा कष्ट देने वाला’ बताया और कहा कि भारत ने सुरक्षा जरूरतों के लिए ‘व्यवहारिक दृष्टिकोण’ नहीं अपनाया. उन्होंने यह भी बताया कि भारत का सुरक्षा वातावरण प्रभावित होता है और क्षेत्र में टकराव टालने के साथ-साथ शांति सुनिश्चित करने के लिए सैन्य शक्ति के तहत एयरोस्पेस शक्ति की जरूरत होगी.

राहा ने एक एयरोस्पेस सेमिनार में कहा, ‘‘हमारी विदेश नीति संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र, गुट निरपेक्ष आंदोलन घोषणापत्र और पंचशील सिद्धांत में निहित है. हमने उच्च आदेशों का पालन किया और मेरी राय में हमने सुरक्षा जरूरतों को लेकर व्यवहारिक दृष्टिकोण नहीं अपनाया है. हमने अनुकूल वातावरण बनाए रखने के लिए सेना की शक्ति की भूमिका को एक हद तक नजरअंदाज किया है.”

राहा के मुताबिक वायुसेना को इस बात का मलाल है कि 1962 में चीन के साथ हुई जंग में उसे मौके नहीं मिले. वरना हालात वहां भी कुछ और होते.

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