अद्भुत! वचन निभाने के लिये लड़ते हुए दो बार दी इस वीर ने जान!

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मनुष्य एक बार जन्म लेता है और एक ही बार मरता है. लेकिन, राजस्थान के रेतीले धोरों की फिजाओं में एक ऐसे वीर की कथा गूंजती है जिसने जन्म भले की एक बार लिया हो लेकिन अपने वचन को निभाने के लिए मृत्यु की जयमाला दो बार गले में पहनी. आज भी यहां इस वीर की याद में अक्सर गाया जाता है कि
जलम्यो केवल एक बर, परणी एकज नार.
लडियो, मरियो कौल पर, इक भड दो-दो बार..


अर्थात- उस वीर ने केवल एक ही बार जन्म लिया तथा एक ही भार्या से विवाह किया ,परन्तु अपने वचन का निर्वाह करते हुए वह वीर दो-दो बार लड़ता हुआ वीर-गति को प्राप्त हुआ.

जोधपुर के महाराजा गजसिंह ने अपने ज्येष्ट पुत्र अमरसिंह को जब राज्याधिकार से वंचित कर देश निकला दे दिया तो बल्लूजी चाम्पावत व भावसिंह कुंपावत दोनों सरदार अमरसिंह के साथ यह कहते हुए चल दिए कि यह आपका विपत्ति काल है और विपत्ति काल में हम सदैव आपकी सहायता करेंगे. यह हमारा वचन है. दोनों ही वीर अमरसिंह के साथ बादशाह के पास आगरा आ गए. यहां आने पर बादशाह ने अमरसिंह को नागौर परगना का राज्य सौंप दिया.

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अमरसिंह को मेंढे लड़ाने का बहुत शौक था इसलिए, नागौर में अच्छी किस्म के मेंढे पाले गए और उन मेंढों की भेडिय़ों से रक्षा हेतु सरदारों की नियुक्ति की जाने लगी और एक दिन इसी कार्य हेतु बल्लू चांपावत की भी नियुक्ति की गयी इस पर बल्लूजी यह कहते हुए नागौर छोडक़र चल दिए कि मैं विपत्ति में अमरसिंह के लिए प्राण देने आया था, मेंढे चराने नहीं. अब अमरसिंह के पास राज्य भी है, विपत्ति काल भी नहीं, अत: अब मेरी यहां जरूरत नहीं है.

इसके बाद बल्लू चांपावत महाराणा के पास उदयपुर चले गए. कहा जाता है कि वहां भी अन्य सरदारों ने महाराणा से कहकर उन्हें निहत्थे ही शेर से लड़ा दिया. सिंह को मारने के बाद बल्लूजी यह कह कर वहां से भी चल दिए कि वीरता की परीक्षा दुश्मन से लड़ाकर लेनी चाहिए थी. जानवर से लड़ाना वीरता का अपमान है. इसके बाद उन्होंने उदयपुर भी छोड़ दिया बाद में महाराणा ने एक विशेष बलिष्ट घोड़ी बल्लूजी के लिए भेजी. जिससे प्रसन्न होकर बल्लूजी ने वचन दिया कि जब भी मेवाड़ पर संकट आएगा तो मैं सहायता के लिए अवश्य आऊंगा.

इसके बाद जब अमरसिंह राठौड़ आगरा के किले में सलावत खां को मारने के बाद खुद धोखे से मारे गए, तब उनकी रानी हाड़ी ने सती होने के लिए अमरसिंह का शव आगरे के किले से लाने के लिए बल्लू चांपावत व भावसिंह कुंपावत को बुलवा भेजा (क्योंकि विपत्ति में सहायता का वचन इन्हीं दोनों वीरों ने दिया था). बल्लू चांपावत अमरसिंह का शव लाने के लिए किसी तरह आगरा के किले में प्रविष्ट हो वहां रखा शव लेकर अपने घोड़े सहित आगरे के किले से कूद गए और शव अपने साथियों को सुपुर्द कर दिया लेकिन, खुद बादशाह के सैनिको को रोकते हुए वीर-गति को प्राप्त हो गए.

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