फिल्म समीक्षा : लवशुदा

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सर्वजीत सिंह चौहान

जहां एक ओर बॉलीवुड में विश्व स्तरीय फिल्में बनाने की होड़ पिछले एक दशक से चल रही है और बॉलीवुड अपनी इस मुहिम में बहुत हद तक सफल भी हुआ है. वहीं कुछ ऐसी फिल्में भी बीच-बीच में आती रहती हैं जो भारतीय दर्शकों के दिलो-दिमाग में रची बसी संवेदनाओं और भावनाओं का अच्छे से उकेरने में सफल होती हैं.

जिसका उदाहरण पिछले दिनों आई फिल्में ‘सनम रे’ और ‘सनम तेरी कसम’ है पर कुछ फिल्म मेकर और बॉलीवुड एक्टर्स ऊपर दी हुई दोनों ही धाराओं को लेकर चलने के चक्कर में या दोनों धाराओं से हटकर फिल्म बनाने के चक्कर में गलतियां करते हैं उन गलतियों का अच्छा उदाहरण है ‘लवशुदा’

निर्देशक वैभव मिश्रा ने गिरीश कुमार को लेकर ‘लवशुदा’ रच डाली है. गौरव(गिरीश कुमार) एक सीधे-साधे सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं. वो सीधे – साधे हैं यह फिल्म में उनके द्वारा की गई हरकतों से कतई जाहिर नहीं होता पर ऐसा वो खुद अपने मुंह से बताते हैं. गौरव की शादी होने वाली है इस खुशी में वो एक बैचलर पार्टी रखता है और इसी पार्टी में गौरव की मुलाकात पूजा(नवनीत कौर ढिल्लन) से होती है. उनके बीच कुछ ऐसा होता है कि गौरव को प्यार हो जाता है पूजा से पर शायद वो एक्सेप्ट करने के लिए तैयार नहीं है.

गौरव जिसकी शादी पहले से ही उसकी दो बड़ी बहनों टिस्का चोपड़ा और बेनाफ ने तय कर रखी है. उस शादी के लिए बेमन से तैयार होता है और शादी भी कर लेता है क्योंकि निर्देशक और लेखक के अनुसार गौरव का ध्यान बचपन से उसकी दोनों बड़ी बहनों ने अच्छे से रखा है इसलिए वो उनकी हर बात मानता है. बेशक चाहे वो उन बातों से इल्म रखता हो या नहीं.

4 साल बीतते हैं गौरव की शादी टूट चुकी है. वो अपनी बहनों से सवाल – जवाब करने जितना मैच्योर हो गया है. उसकी मुलाकात फिर पूजा से होती है पर इस बार पूजा की शादी होने वाली है और गौरव उसको कैसे भी पाना चाहता है. फिल्म में सीन दर सीन वही स्थितियां पुनरावृत्ति के तौर पर आती हैं. जहां से फिल्म शुरू हुई थी. अब ये जानना बिल्कुल भी रोचक नहीं रह जाता है कि क्या पूजा गौरव से शादी के लिए तैयार होगी.

वैभव मिश्रा ने फिल्म का निर्देशन ऐसे किया है जैसे किसी अनुभवहीन और कमजोर खिलाड़ी के हाथों में बल्ला पकड़ा के क्रीज पर खड़ा दिया गया हो. उन्होंने फिल्म का लेखन और स्क्रीनप्ले ऐसे लिखा है जैसे गली क्रिकेट में खेलने वाले बेकार से क्रिकेटर को अच्चा सा कैच पकड़ने के लिए कह दिया गया हो.

टिस्का चोपड़ा, सचिन, फरीदा सबने वैसी ही ऐक्टिंग की है जैसे उन्होंने फॉर्मेलिटी के लिए करनी थी. ढाई से तीन साल का गैप लेकर आए गिरीश कुमार अगर 3 साल और गैप करके लेकिन अच्छी फिल्म लेकर आते तो अच्छा होता. ‘रमैया वस्तावैय्या’ के बाद इतना लंबा गैप फिर इतनी बकवास सी फिल्म में फर्ज अदायगी ये सब पचाने लायक ही नहीं है. उन्होंने और पूजा के रोल में नवनीत कौर दोनों ने निराश किया है.

जैसा कि म्यूजिक निर्देशक मिथुन पिछले कई सालों से अच्छा म्यूजिक देते आ रहे हैं वैसे ही कोशिश उनकी दो ही गानों में दिखती है. आतिफ की आवाज में गाना अच्छा लगता है और आज फिर पीने की तमन्ना है भी ठीक है

जैसी गलतियां निर्देशक, लेखक और ऐक्टर्स ने की है वैसी ही गलतियां एडिटर उत्सव भगत ने भी की है. बहुत से सीन्स एडिट करके फिल्म छोटी और थोड़ी सी अच्छी हो सकती थी पर उन्होंने भी गलती करने से गुरेज नहीं किया है.

क्यों देखें फिल्म

1. फिल्म के शायद दो या तीन अच्छे गानों के लिए.

2. अब फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसकी वजह से ‘क्यों देखें’ में या दूसरे प्वाइंट में डाला जा सके

क्यों न देखें

1. बेहतरीन बॉलीवुड फिल्मों के दौर में ऐसी बकवास फिल्म से बचने के लिए.

2. आप चाहें ‘एलीट’ दर्शक हों या ‘मास’ यह फिल्म आप दोनों को ही पकायेगी.

3. फिल्म क्या संदेश देना चाहती है ये खुद मेकर्स को नहीं पता. खैर हर फिल्म संदेश देने केलिए नहीं होती है. पर उन फिल्मों में कम से कम मसाला तो होता है जो आपको इंटरटेन कर सके. यह फिल्म ऐसा कोई भी मानक ले के नहीं चलती.

4. अगर आप अपनी  दैनिक जीवन परेशानियों से परेशान हैं तो ये फिल्म आपकी उन परेशानियों को भुलाने का काम तो बिल्कुल भी नहीं करेगी. उल्टा आपको परेशान जरूर कर देगी.

5. अगर आपके पास इतना रुपया है कि आप उसे इस हफ्ते अपने आप को इंटरटेन के लिए खर्च कर सकें तो  प्लीज किसी रेस्टोरेंट में जाकर अच्छे व्यंजों का लुत्फ उठाएं या फिर सनम रे या नीरजा के बारे में सोचें बजाय इस मूवी के.

फिल्म का ट्रेलर यहां देखिए…

लेखक www.faltukhabar.com के फिल्म पत्रकार हैं. यह लेख उन्होंने मूलत: www.faltukhabar.com के लिए लिखा है.

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