हैदराबाद के कई स्कूलों में 669 निम्न-श्रेणी शिक्षक और कर्मचारी अब तक 14 दिनों से भूखा अवधि का विरोध कर रहे हैं — न तो उन्हें तनख्वाह मिली, न ही उनकी सेवाएँ नियमित की गईं। ये लोग 2021 में सिंध शिक्षा विभाग द्वारा भर्ती किए गए थे, जिन्होंने सभी कानूनी और प्रक्रियागत शर्तें पूरी कीं, लेकिन 2023 से आज तक एक रुपया नहीं मिला। ये शिक्षक अब अपने बच्चों के लिए दूध खरीदने के लिए भी उधार माँग रहे हैं।
जब भर्ती के बाद वेतन नहीं मिला
प्रतिष्ठित शिक्षक संगठनों के नेता गुलाब रंद, असद मल्ल और सैयद मोअज्जम अली शाह ने कहा कि ये कर्मचारी न केवल बेरोजगार नहीं हैं, बल्कि एक ऐसे व्यवस्था के शिकार हैं जो उन्हें भर्ती करके भूल गई। उन्होंने सिंध सरकार के आह्वान पर जवाब देते हुए कहा, "हम आपके द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार काम कर रहे हैं, लेकिन आप हमें उन नियमों के बाहर छोड़ देते हैं।" ये लोग अपनी सेवाओं को नियमित करने और पाकिस्तान के श्रम कानूनों के अनुसार वेतन में सुधार की माँग कर रहे हैं।
उनके विरोध का असर गहरा हो रहा है। एक शिक्षिका ने बताया कि उसका बेटा अब तीन महीने से स्कूल नहीं जा रहा — न तो उसके पास यूनिफॉर्म है, न ही बैग। "हम खुद भूखे हैं, तो बच्चों को क्या दें?" उसने पूछा।
रो प्लांट ऑपरेटर्स की भी विपत्ति
शिक्षकों के साथ ही, सिंध के RO प्लांट ऑपरेटर्स एसोसिएशन के कर्मचारी भी विरोध कर रहे हैं। 2012 में नियुक्त ये लोग अब तक महीने के सिर्फ 25,000 रुपये कमा रहे हैं — जबकि सिंध सरकार ने 2024 में न्यूनतम वेतन 40,000 रुपये तय किया था। लियाकत चंदियो, इम्दाद संद और याकूब शोरो ने हैदराबाद प्रेस क्लब पर एकत्र होकर कहा, "हम पानी बचाने के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन खुद पीने के लिए पैसा नहीं कमा पा रहे।"
पंजाब, भारत में भी वेतन बंद
पाकिस्तान के बाहर, भारत के पंजाब राज्य में 1,400 से अधिक शिक्षक छह महीने से वेतन नहीं पा रहे। पंजाब राज्य सहायता स्कूल शिक्षक और अन्य कर्मचारी संघ ने 14 सितंबर, 2025 को राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया को एक औपचारिक पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने पूछा — "क्या आप शिक्षा क्रांति की बात करते हैं, जब हमारे शिक्षक बिना खाने के घर पर बैठे हैं?"
इस पत्र के सह-हस्ताक्षरकर्ता गुरमीत सिंह मादनपुर और शरणजीत सिंह कड़िमजरा ने बताया कि यहाँ के C&V कैडर के शिक्षक भी लंबे समय से भुगतान नहीं पा रहे। एक स्कूल के प्रधानाध्यापक ने कहा, "हम अपनी पुस्तकें बेच रहे हैं। बच्चों के लिए नोट्स बनाने के लिए कागज खरीदने के लिए भी दोस्तों से माँगनी पड़ रही है।"
बेलोचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा का संकट
पाकिस्तान के बेलोचिस्तान में, क्वेटा के बेलोचिस्तान विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने 24 अप्रैल, 2024 को विश्वविद्यालय से हॉकी चौक तक एक बड़ी प्रदर्शनी की। प्रोफेसर कलीमुल्लाह बरीच और नज़ीर लेहरी ने कहा, "हम चार महीने से वेतन नहीं पा रहे। अगर हम नहीं आएंगे, तो विश्वविद्यालय बंद हो जाएगा।" यह उनकी दूसरी प्रदर्शनी थी — पहली बार उन्होंने बेलोचिस्तान विधानसभा के सामने विरोध किया था।
खैबर पख्तूनख्वा के शिक्षक और व्यापारी समूहों ने 2025-26 के केंद्रीय बजट को "आम आदमी की दुर्दशा बढ़ाने वाला" बताया। इसी बीच, पंजाब शिक्षा फाउंडेशन (PEF) के साझेदार स्कूलों के मालिक अभी तक वेतन वृद्धि लागू नहीं कर पा रहे — क्योंकि फाउंडेशन से आधिकारिक निर्देश नहीं आया।
फेपुएसा का आरोप: बजट में विश्वविद्यालय शिक्षकों को नजरअंदाज
केंद्रीय बजट के खिलाफ सबसे कड़ी आलोचना डॉ. मुहम्मद इस्लाम, FAPUASA के अध्यक्ष ने की। उन्होंने कहा कि 30% विषमता घटाने की अनुमति (DRA) केवल सरकारी विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के लिए है — निजी संस्थानों के शिक्षकों को इसका लाभ नहीं मिल रहा। उन्होंने आगे कहा कि डॉक्टरेट भत्ता बढ़ाकर 25,000 रुपये करना और 25% कर छूट वापस लाना जरूरी है।
"ये बजट शिक्षा को नहीं, बजट बनाने वालों को बढ़ा रहा है," उन्होंने कहा। उनका आरोप है कि पंजाब सरकार को कम से कम 50 अरब रुपये का निरंतर अनुदान देना चाहिए — नहीं तो विश्वविद्यालयों का भविष्य खत्म हो जाएगा।
क्यों ये सब हो रहा है?
ये सिर्फ वेतन नहीं, ये एक व्यवस्था का अंत है। जब शिक्षक भर्ती होते हैं, तो उन्हें एक वादा किया जाता है — लेकिन जब वेतन देने का समय आता है, तो बजट अनुमानों में विश्वविद्यालयों को अंतिम प्राथमिकता बन जाता है। अनुमानों के अनुसार, पाकिस्तान में शिक्षा पर खर्च केवल GDP का 2.1% है — जबकि WHO की सिफारिश 4-6% है।
इसका असर सीधे बच्चों पर पड़ रहा है। एक अध्ययन के अनुसार, 2024 में सिंध के 43% स्कूलों में शिक्षकों की कमी थी। अगर ये विरोध जारी रहा, तो अगले विद्यालयी वर्ष में लाखों बच्चे स्कूल नहीं जा पाएंगे।
अगला कदम क्या है?
शिक्षकों ने अब सीधे बिलावल भुट्टो ज़र्दारी और सैयद मुराद अली शाह को संबोधित किया है। उन्होंने एक अंतिम चेतावनी दी है — अगर 30 जून तक वेतन नहीं आया, तो वे अपने बच्चों के साथ स्कूलों के बाहर रहने का फैसला करेंगे।
इसके बाद क्या? शायद एक नया आंदोलन। शायद एक नया कानून। या शायद — एक नया विश्वास जो बच्चों के लिए बहुत देर हो चुका है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
सिंध के शिक्षकों को क्यों नहीं मिल रहा वेतन?
2021 की भर्ती के बाद भी सिंध शिक्षा विभाग ने इन कर्मचारियों के लिए बजट आवंटित नहीं किया। विभाग का दावा है कि "अनुमानों में त्रुटि" हुई, लेकिन शिक्षकों का कहना है कि यह जानबूझकर किया गया है। 2023 में नियुक्त हुए 669 लोगों में से 87% के पास अभी तक एक रुपया नहीं आया।
पंजाब, भारत में शिक्षकों की स्थिति पाकिस्तान से कैसे अलग है?
भारत में शिक्षकों की भर्ती सरकारी स्कूलों के बजाय सहायता प्राप्त स्कूलों में होती है, जहाँ वित्तीय जिम्मेदारी राज्य और निजी संस्थानों के बीच बँटी है। इसलिए वेतन अदायगी में देरी होती है। पंजाब में 1,400 शिक्षकों को छह महीने का वेतन नहीं मिला, लेकिन यहाँ कानूनी आधार अधिक मजबूत है — उन्हें न्यायालय की ओर जाने का अधिकार है।
FAPUASA का आरोप क्या है और क्या इसका सच है?
FAPUASA का आरोप है कि 2025-26 के केंद्रीय बजट में निजी विश्वविद्यालयों के शिक्षकों को 30% DRA का लाभ नहीं दिया गया, जबकि सरकारी शिक्षकों को दिया गया। यह सच है — बजट दस्तावेज में यह अंतर स्पष्ट रूप से दिखता है। डॉ. इस्लाम का कहना है कि यह विभेदन शिक्षा के गुणवत्ता को नुकसान पहुँचा रहा है।
क्या इस संकट का समाधान संभव है?
हाँ, लेकिन इसके लिए दो चीजें जरूरी हैं: पहला, तुरंत वेतन अदायगी का आदेश; दूसरा, शिक्षा बजट में स्थायी वृद्धि। बांग्लादेश और श्रीलंका ने 2022-23 में शिक्षा बजट को GDP के 4% तक बढ़ाकर इसी समस्या का समाधान किया। पाकिस्तान और भारत दोनों इस मार्ग पर चल सकते हैं — बस इच्छाशक्ति चाहिए।
इस समस्या से बच्चों को क्या प्रभाव पड़ रहा है?
शिक्षकों के विरोध के कारण स्कूल बंद हो रहे हैं। हैदराबाद में 18 स्कूलों में अब अध्यापन बंद है। एक अध्ययन के अनुसार, यहाँ के बच्चों में 2024 में पाठ्यक्रम पूरा करने की दर 58% रही — 2020 में यह 82% थी। शिक्षा का यह रिक्त स्थान आज बच्चों का भविष्य बन रहा है।
क्या शिक्षकों के विरोध से कोई राजनीतिक प्रभाव हुआ है?
हाँ। हैदराबाद के चुनावी क्षेत्रों में अब शिक्षकों के विरोध को राजनीतिक मुद्दा बनाया जा रहा है। पीपीपी के नेता बिलावल भुट्टो ज़र्दारी ने अभी तक कोई बयान नहीं दिया, लेकिन उनके नेतृत्व वाले इलाकों में इस मुद्दे पर चुनावी वादे शुरू हो गए हैं। यह एक आम आदमी का मुद्दा है — और अब यह राजनीति का भी हिस्सा बन गया है।