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आम लड़कियों की तरह है सिंधु की जिंदगी

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रियो ओलंपिक में रजत पदक जीतकर देश को गौरवांवित करने वाली स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधू एक आम 21 साल की लड़की की तरह ही है. सिंधु की मां ने कहा कि जब वो 8 साल की थी तभी से उसने बैडमिंटन रैकेट को थाम लिया था. उसके इस सफर में गोपी सर (पुलेला गोपीचंद) का काफी योगदान रहा है. उनके अकादमी में उसे किसी तरह की परेशानी नहीं हुई है.

I scream, you scream, we all scream for ice cream 🍦😉 @sreeram_goalla @divya.pusarla #sydney#bondibeach#iscreamyouscream

A photo posted by sindhu pv (@pvsindhu1) on

उन्होंने कहा कि बैडमिंटन खेलने के लिए हमलोगों से अधिक सिंधु को ही परेशानी झेलनी पड़ी है. क्योंकि बैडमिंटन सीखने के लिए वो शिकंदराबाद से गच्चीबोली आती थी. प्रतिदिन उसे 120 किमी का सफर तय करना पड़ता था.

बाद में सिंधु के लिए हमलोग यहां शिफ्ट हो गए. मैंने अपनी नौकरी भी छोड़ दी. सिंधु ने गोपीचंद के बारे में उन्होंने कहा ‘गोपी सर हमेशा प्रेरित करते रहते हैं. वह भले ही दूसरों को गुस्से में लगते हो लेकिन मेरे लिये यह उनकी प्रेरणा थी जिससे मुझे मदद मिली.

Happy birthday to my dearest mom…..many many happy returns of the day amma …lots of love😚🎊🎉☺

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पिछले दो महीने हमने काफी कड़ी मेहनत की और काफी बलिदान दिये जिसका हमें फल मिला. हमने पदक के बारे में नहीं सोचा था. हमने सिर्फ एक मैच पर ही ध्यान लगाया और मैं खुश हूं कि मैंने पदक जीता.’

Happy Mother’s Day mommy❤️❤️❤️…love u lots 😘

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जब बात अनुशासन की आती है तो भारत के दिग्गज बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद कोई समझौता नहीं करते और यही वजह रही कि उन्होंने पिछले तीन महीने से पी वी सिंधु को फोन से दूर रखा और रियो पहुंचने पर इस सिल्वर मेडल विजेता शटलर को आईसक्रीम भी नहीं खाने दी.

Live your dream☺️☺️💙💜💚💛 #happyme😁😁#liveurdreamluvurlife💙

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जब कुछ हासिल करना होता है तो फिर जिंदगी में कई बलिदान करने पड़ते हैं और साइना नेहवाल से लेकर सिंधु तक गोपी के सिद्धांत कभी नहीं बदले. लेकिन जिस दिन उनकी शिष्या सिंधु ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी उस दिन एक कड़क शिक्षक भी नरम बन गया और उन्होंने बड़े भाई की तरह भूमिका निभाई.

Happy teachers day ☺ ☺ 😊 🙏 to my coach….

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