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फिल्म समीक्षा : फितूर

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सर्वजीत सिंह चौहान

बॉलीवुड की नजर पिछले एक दशक से अंग्रेजी राइटर्स और उनकी कहानियों एंव उनके उपन्यासों पर पड़ी है. यही कारण है कि मकबूल, ओमकारा और हैदर जैसी फिल्मों का निर्माण संभव हो सका है. फितूर इन्हीं फिल्मों की श्रेणी में एक और नाम है. जिसका निर्दशन अभिषेक कपूर ने किया है. फिल्म चार्ल्स डिकेंस की नॉवेल ‘ग्रेट एक्सपेक्टेशन्स’ पर बेस्ड है पर हिंदी फिल्मों के दर्शकों की पसंद का ध्यान रखते हुए कुछ खास बदलाव भी किए गए हैं.

फिल्म की कहानी नूर(आदित्य रॉय कपूर) और फिरदौस(कैटरीना) की है साथ ही में बेगम(तब्बू) की भी है जो बहुत सारा पैशन, रोमांस और ड्रामा को लेकर आगे बढ़ती है. नूर(आदित्य रॉय कपूर) एक गरीब फैमिली का बच्चा है जो अपनी दीदी और जीजा के साथ उन्हीं के घर में रहता है. इत्तेफाक से उसे बेगम की हवेली में काम करने के लिए रख लिया जाता है. बेगम(तब्बू) की बेटी फिरदौस(कैटरीना) को देखते ही उसे प्यार हो जाता है. फिरदौस(कैटरीना) हमेशा एटिच्यूट में रहने वाली लड़की है. जिसका एटिच्यूट उसकी मां ने उसके अंदर डेवलप किया है.

उसकी मां यानी की बेगम(तब्बू) को इस बात का एहसास हो जाता है कि नूर(आदित्य रॉय कपूर), फिरदौस(कैटरीना) को चाहता है चूंकि वो अपने पास्ट में प्यार में धोखा खाई हुई है इसलिए इस बात को लेकर वो चिंतित तो है पर नूर(आदित्य रॉय कपूर) के रूप में उसे अपनी छवि दिखती है और जिस दर्द को वो झेल रही है वो दर्द वो नूर(आदित्य रॉय कपूर) को भी देना चाहती है.

दर्द देने की इस हवस में वो अपनी बेटी को लेकर नूर(आदित्य रॉय कपूर) के साथ खेल खेलती है. समय बोलता है नूर(आदित्य रॉय कपूर) और फिरदौस(कैटरीना) दोनों बड़े हो जाते हैं. नूर और फिरदौस(कैटरीना) 10 साल के बिछड़ते हैं क्योंकि फिरदौस(कैटरीना) पढ़ाई के लिए बाहर गई है अचानक से पेटिंग की फिल्म में अनजान आदमी की तरफ से पाई स्कॉलरशिप के सहारे नूर(आदित्य रॉय कपूर) भी दिल्ली पहुंचता है. जहां उसकी मुलाकात फिर से फिरदौस(कैटरीना) से होती है. फिरदौस(कैटरीना) का बॉयफ्रैंड भी है पर नूर(आदित्य रॉय कपूर) उसे वैसे ही प्यार करता है.

बेगम की नजर अब भी नूर पर है वह अब भी खेल रही है. अब आगे फिल्म की कहानी में जो कुछ भी होता है उसे पोएट्री की तरह पिरोया गया है इसलिए बाकी चीजे बहाने से फिल्म का मजा किरकिरा हो जाएगा. फिल्म के क्लाईमैक्स में उतार चढ़ाव, कुंठा और प्यार को लेकर पैशन संयुक्त रूप से दिखता है. फिल्म की कहानी चार्ल्स डिकेंस की ‘द ग्रेट एक्सपेक्टेशन’ पर बेस्ड है. इसलिए जिसने भी ये नॉवेल पढ़ी है उसे कहानी में किए गए बदलाव साफ-साफ दिख जाएंगे.

फिल्म के निर्देशन की कमान अभिषेक कपूर के हाथ मे हैं जिन्होंने ‘काय पो चे’ में अपने निर्देशन का कमाल दिखाया था. वही कमाल उन्होंने इस बार भी किया है. फिल्म की कहानी में नॉवेल का रस डालने की उनकी कोशिश दिखती है. वो आज के दर्शक के उस दबाव में बिल्कुल भी नहीं आते हैं कि फिल्म की रफ्तार तेज होनी चाहिए. इसिलए उन्होंने फिल्म की रफ्तार धीमी रखी है ताकि कहानी की हर खूबसूरती अच्छे से नजर आए.

फिल्म की शरुआत में ही बेगम के मुंह से ‘आपके हंसने, खेलने के दिन है, चोट खाने के लए उम्र पड़ी है’ फिल्म का सारांश स्पष्ट करती ही है. साथ में ही बेगम(तब्बू) के बदलते एक्सप्रेशन उनकी निर्देशन क्षमता दिखाती है. उन्होंने फिल्म में बहुत सी चीजें, सीन्स और ऐक्टर्स के चेहरों से ही स्पष्ट करवा दी है. उन चीजों को स्पष्ट करने के लिए अलग से घटनाएं नहीं जोड़ी हैं जैसे फिल्म के क्लाईमैक्स में बेगम और बेगम के धोखेबाज आशिक का लॉकेट फिरदौस और दर्शकों को यह समझाने के लिए काफी है कि फिरदौस को नूर का ही हो जाना चाहिए क्योंकि धोखेबाज होने के बावजूद भी वो बेगम की लॉकेट में अपनी जगह बनाये हुए है.

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फिल्म का ऐक्टिंग पक्ष अच्छा है. क्योंकि तब्बू जैसी मंझी हुईं कलाकार ने हैदर की तरह ही इसमें भी अपनी क्षमता का परिचय दिया है. आदित्य रॉय कपूर ने अपने चेहरे में अपनी अंदर की मुश्किलों, सवालों, झंझावतों और प्यार के पैशन को अच्छे से उकेरा है. नूर के बचपन के रोल में मोहम्मद अबरा अच्छे लगे हैं. तो वहीं फिरदौस के जवानी के रोल में क्यूट लगने के अलावा कैटरीना ने फिर से निराश किया है. वो फ्लैट चेहरे के साथ ही एक्सप्रेशन देने की जद्दोजहद में फिल्म गुजार देती हैं. तो वहीं उनके बचपन के रोल में ट्यूनिशा शर्मा वही कैरेक्टर उकेर दिया है जो असल में चार्ल्स डिकेंस ने गढ़ा है. उनका ऐच्टीट्यूड देखते ही बनता है.

बाकी छोटे-छोटे कैरैक्टर्स ने भी ठीक काम किया है. कुछ सीन आदिति राव हैदरी के पास भी है. उन्होंने भी बेगम की जवानी का दर्द दिखाया है. तो फिल्म में अचानक से आए पॉजिटिव विलेन के रूप में अजय देवगन चौंकाते हैं. स्वानंद किरकरे ने फिल्म के अच्छे गाने रचे हैं जो अच्छे तो लगते ही हैं साथ में फिल्म की खूबसूरती भी बढ़ाते हैं.

क्यों देखें फिल्म

1. चार्ल्स डिकेंस की नॉवेल को अच्छी फिल्म के रूप में देखने के लिए.

2. अभिषेक कपूर की उभरती और निखरती निर्देशन क्षमता के लिए.

3. अच्छे और टचिंग गाने के लिए.

4. तब्बू सही मायने में एक इंटरनेशनल स्टार हैं. उनकी ऐक्टिंग को देखने के लिए.

5. नॉवेल विधा को एक अच्छी फिल्म का रूप देने में कई बार निर्देशक गड़बड़ कर देते हैं पर इस बार ऐसा नहीं हुआ. नॉवेल का स्प्रिट बनी हई है.

क्यों न देखें फिल्म

1. कैटरीना कैफी की जानी–पहचानी ऐक्टिंग के लिए.

2. आज भी बॉलीवुड इस दबाव को झेल रहा है कि दुखद और सच के करीब क्लाईमैक्स को दर्शक पसंद नहीं करेंगे इसलिए फिल्म में किए गए ये बदलाव जरूरी नहीं थे क्या ‘बाजीराव मस्तानी’ के लीक से हटकर होने के बावजूद भी फिल्म ने कामयाबी हासिल नहीं की

3. प्रमोशन के रूप में प्रयुक्त सांग फिल्म से नदारत हैं.

4. फिल्म धीमी है हालांकि चार्ल्स डिकेंस को जीवीत रखने के लिए ये जरूरी था पर फिर भी तेज तर्रार फिल्मों के शौकीन दर्शक निराश होंगे.

निर्देशन : अभिषेक कपूर
स्टार कास्ट : कैटरीना, आदित्य राव कपूर, तब्बू
म्यूजिक : अमित त्रिवेदी
रनिंग टाइम : 129 मिनट

फिल्म का ट्रेलर यहां देखिए

लेखक www.faltukhabar.com के फिल्म पत्रकार हैं. यह लेख उन्होंने मूलत: www.faltukhabar.com के लिए लिखा है.

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