पाकिस्तान और चीन को पीएम नरेंद्र मोदी ने कैसे सिखाया सबक?

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70वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बलूचिस्तान और ‘पाकिस्तान के कब्जे वाली कश्मीर’ की ‘आजादी’ का खुले तौर पर समर्थन किया. पीएम के इस बयान पर चर्चा शुरू हो गई है. विदेश मामलों के जानकार इसे गेम चेंजर बता रहे हैं तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद इस पर सवाल उठा रहे हैं. पूर्व विदेश सचिव शशांक ने पीएम का इस मुद्दे पर खुलकर समर्थन किया है तो विदेश मामलों के जानकार कमर आगा ने इसे गेम चेंजर बताया है. कमर आगा कहते हैं कि पीएम का यह बयान चीन के लिए भी चेतावनी है.

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आपको बता दें कि पीएम मोदी ने कहा, “दुनिया देख रही है. पिछले कुछ दिनों में बलूचिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाली कश्मीर के लोगों ने मेरा आभार जताया है.” उन्होंने कहा, “मैं उनका शुक्रगुजार हूं.”

मोदी ने पिछले सप्ताह कहा था कि पाकिस्तान को दुनिया को यह जवाब देने का समय आ गया है कि वह पाकिस्तान के कब्जे वाली कश्मीर व बलूचिस्तान के लोगों पर क्यों अत्याचार कर रहा है. बलूचिस्तान पूरे पाकिस्तानी प्रांत का 44% हिस्सा है. जो कि खनिज के क्षेत्र में समृद्ध है. पाकिस्तान चरमपंथी गुटों और अलगाववादी गुटों पर नियंत्रण रखने के नाम पर यहां के लोगों पर सैन्य कारवाई कर रहा है.

वाजपेयी के वक्त आगरा समिट जैसे अहम समय पर देश के विदेश सचिव रहे शशांक ने बातचीत में बलूचिस्तान के मामले में प्रधानमंत्री मोदी का खुलकर समर्थन किया है. शशांक से जब बलूचिस्तान को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की ताजा नीति के बारे में पूछा गया तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि ये मामला प्रधानमंत्री के स्तर पर ही उठ सकता था और किसी स्तर पर नहीं. शशांक बताते हैं कि पिछली सरकार के दौरान भी पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम के नारायणन ने बलूचिस्तान पर सख्त रूख अपनाने का प्रस्ताव दिया था मगर तत्कालिन मनमोहन सरकार ने उनकी राय नहीं मानी.

विदेश मामलों के जानकार कमर आगा कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी को बलूचिस्तान का मुद्दा पाकिस्तान की हरकतों की वजह से उठाना ही पड़ा और ये एक गेम चेंजर साबित होगा. कमर आगा का कहना है कि इसमें चेतावनी सिर्फ पाकिस्तान को ही नहीं चीन को भी है क्योंकि चीन पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरीडोर को बलूचिस्तान से होकर ही गुजरना है.

हालांकि प्रधानमंत्री मोदी की इस राजनीति का पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने विरोध किया है. खुर्शीद कहते हैं कि डर इस बात का है कि कहीं पाकिस्तान अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत के इस रूख को बलूचिस्तान में भारत द्वारा फैलाए जा रहे आतंकवाद का नाम देकर भुनाने की कोशिश ना करे. जानकारों और खासकर इस पर पूर्व विदेश सचिव शशांक कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी को संयुक्त राष्ट्र की स्थाई सदस्य देशों को इस मामले में सारी जानकारी देनी चाहिए और ठीक वैसे ही भरोसे में लेना चाहिए जैसे इंदिरा गांधी ने 71 की जंग से पहले किया था, ताकी पाकिस्तान भारत के इस रूख को गलत तरीके से पेश ना कर सके.

कमर आगा बताते हैं कि पाकिस्तान और बलूचिस्तान के बीच विवाद उतना ही पुराना है जितना पाकिस्तान है. विभाजन के बाद बलूचिस्तान पाकिस्तान से नहीं जुड़ना चाहता था. 1948 में पाक आर्मी ने उस पर कब्ज़ा कर लिया. 2 बड़े ग्रुप थे एक हिन्दुस्तान के साथ रहना चाहता था दूसरा आज़ाद होना चाहता था, इन्होंने ही नेशनलिस्ट मूवमेंट चलाया.

पाकिस्तान ने हमेशा बलूचिस्तान को दबाकर रखा. उस क्षेत्र में ये सबसे बड़ा प्रॉविंस है. काफी मात्रा में मिनरल, गोल्ड मेटल वहां पाया जाता है. लेकिन पाकिस्तान वहां कोई विकास नहीं किया. सिर्फ उतना ही विकास किया जितनी उसे ज़रूरत थी. आर्मी की हिंसा फैली हुई है.

पाकिस्तान के साथ बलूचिस्तान का अनुभव बेहद खराब रहा है और उसकी बेसिक डिमांड है कि वो पाकिस्तान से अलग होना चाहता है. इसके लिए वो सारी दुनिया से मदद मांग रहे हैं. विभाजन के समय से ही ये समस्या शुरू हुई वरना हिन्दुस्तान के साथ रहने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं थी.

स्ट्रेटिजिकली बलूचिस्तान की लोकेशन बहुत महत्वपूर्ण है. अफगानिस्तान का बॉर्डर उससे मिलता है, इंडियन सागर के पास है इसलिए सागर से कनेक्टिवटी है. ओमान के पास है. यही वजह है कि चीन मीडिल इस्ट से बॉर्डर के ज़रिये गैस पाइपलाइन लाना चाहता है. पोर्ट बना रहा है, रोड बनाना चाहता है और रोज़गार अपने लोगों को दे रहा है. इससे बलोच लोगों को कोई फायदा नहीं हो रहा है.

इंडिया को मजबूर कर दिया इन लोगों ने बोलने के लिए. पीएम ने जो बोला है वो एक गेम चेंजर है इसमे सिर्फ पाकिस्तान को ही नहीं चीन को भी चेतावनी दी गई है. बोलने के अलावा कोई चारा भी नहीं बचा था और एक नैतिक अधिकार भी बनता है क्योंकि वो भारत से मदद चाहते हैं.

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