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हां 99 रूपये में बिक रहा है 1 रूपए का नोट

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1 रूपए के नोट की वेल्यू 1 रूपए ही हो सकती है, लेकिन लोग इसे अब 99 रूपए तक देकर खरीद रहे हैं. 1 रूपए के नोट को लेकर लोगों में इस कदर दीवानगी हैं वो इसके लिए यह कीमत भी चुकाने को तैयार है और गड्डियों में खरीद रहे हैं. सरकार ने करीब दो दशक बाद एक रुपया का नोट फिर से क्या छापा कि कुछ करोबारियों की मौज आ गई. 1 रूपए के ये बेहद कम संख्या में छापे गए नए नोट बाजार में तो नहीं हैं लेकिन ऑनलाइन साइट पर आसानी से उपलब्ध है. वहां एक रुपया का एक नोट 49 रूपये में मिल रहा है, साथ ही शिपिंग चार्ज के रूप में 50 रुपये. मतलब एक रुपया का नोट 99 रुपये में.

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रिजर्व बैंक के एक अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया कि नोटों की कम संख्या होने की वजह से यह सबको नहीं मिल पाया है. यहां तक कि रिजर्व बैंक के अधिकारियों-कर्मचारियों को भी एक-एक पैकेट ही दिया गया है. कुछ नोट चलन के लिए विभिन्न बैंकों के करेंसी चेस्टों में भेजे गए हैं लेकिन वहां से भी ये नोट जनता को नहीं मिल पा रहे हैं. शायद इसी स्थिति का फायदा कालाबाजारी करने वाले उठा रहे हैं. हालांकि उन्होंने इस बात से अनभिज्ञता जताई कि ये नोट ई कामर्स की साइट पर बिक रहे हैं.

देश में जो व्यवस्था है, उसके तहत 1 रुपया के नोट पर वित्त सचिव का हस्ताक्षर होता है. वर्ष 1995-96 से पहले तक एक रुपये का नोट जरूरत के हिसाब से छापा जाता था लेकिन बाद में इसे रोक दिया गया था. अचानक ही मनमोहन सरकार के अंतिम दिनों में एक बार फिर से एक रूपए के 50 हजार पैकेट छापने का निर्णय हुआ. लेकिन इस पर जब तक अमल होता कि उनकी सरकार चली गई. इसके बाद भी इस फैसले को खारिज नहीं किया गया और अंत में राजीव महर्षि के हस्ताक्षर से नोट छपा. लेकिन नोटों की संख्या इतनी कम है कि इसकी कालाबाजारी शुरू हो गई.

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ई कामर्स की साइट ई-बे पर राजीव महर्षि के हस्ताक्षर वाला एक नोट 49 रूपए के साथ 50 रुपये शिपिंग चार्ज में उपलब्ध है. जो व्यक्ति ऐसे 100 नोट का पैकेट लेना चाहते हैं, उनके लिए कीमत 1,999 रुपये की है और शिपिंग चार्ज फ्री. इसी तरह ज्यादा नोट लेने वालों के लिए 10 पैकेट का ऑफर भी है.

वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि कम संख्या में नोट छापने के पीछे मूल कारण है इसके छापने का मूल्य. बता दें कि है कि 1 रूपया वाले एक नोट छापने का मूल्य 1.14 रुपये आया है मतलब उसके मूल्य से ज्यादा नोट छापने की लागत. इस हिसाब से जितने ज्यादा नोट छापे जाएंगे, सरकार को उतना ज्यादा घाटा होगा.

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