‘वोट मांगा तो सिर पर फोड़ देंगे नारियल’

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पिछले साल दिसंबर में गोवा सरकार ने नारियल के पेड़ को गोवा, दमन और दीव पेड़ संरक्षण अधिनियम, 1984 के तहत शामिल पेड़ों की परिभाषा से अलग करने का इरादा जाहिर किया था. इस सरकारी मंशा की विपक्षी दल और स्थानीय लोगों ने आलोचना की थी. इसके बाद सोशल मीडिया पर तूफान मच गया था.

पर्यावरण मंत्री राजेंद्र अर्लेकर ने कहा था, “वनस्पति विज्ञान के मुताबिक नारियल पेड़ नहीं है क्योंकि इसकी शाखाएं नहीं होतीं.” वहीं पर्यावरणविद् डॉ. क्लॉड अल्वारेस के मुताबिक, “लगता है वे यह मानने को तैयार नहीं कि गोवा के लोगों के लिए नारियल की क्या अहमियत है. जब वे वोट मांगने जाएंगे तो शायद गोवा के लोग उनके सिर पर नारियल फोड़ देंगे.”

बता दें कि नारियल पेड़ के सभी हिस्से इस्तेमाल में आते हैं. कोई भी हिस्सा बेकार नहीं जाता. प्रचुर मात्रा में खनिज तत्व वाले नारियल पानी की बड़ी मांग है. तटवर्ती इलाके के लोग नारियल के पेड़ के रेशों से कॉयर मैट, रस्सी, झाड़ू, ब्रश और गद्दे बनाते हैं. इसके अलावा नारियल से टोकरी और छत भी बनती है.

गोवा के लोग नारियल के फल का इस्तेमाल खाना पकाने और मिठाई बनाने में करते हैं. नारियल के तेल का इस्तेमाल दवा बनाने समेत रोज़मर्रा की चीजों में होता है. इसके तेल का इस्तेमाल साबुन बनाने में भी होता है. नारियल के पेड़ से ताड़ी निकालने वाले गोवा की संस्कृति के अहम हिस्से हैं. हालांकि यह काम अब धीरे-धीरे हाशिए पर जा चुका है. ताड़ी से यहां की प्रसिद्ध फेनी और सिरका तैयार होता है.

इतनी सारी खूबियों के कारण इसे ‘कल्पवृक्ष’ कहते हैं. कृषि विभाग हर साल एक लाख नारियल के पौधे बेचता है. गोवा में हर परिवार अपने घर के पीछे एक नारियल का पेड़ जरूर लगाता है और उसे तभी काटता है जब उसकी बहुत जरूरत हो.

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